मेरी धमनियों से लहू सूख चुका है मेरे रीढ़ की हड्डी झुक चुकी है मेरा पेट सिकुड़कर पीठ से चिपक चुका है मेरे सिर के पिछले हिस्से में दर्द ने घर कर लिया है मेरी आंखों का पानी जल रहा है मै अन्न क एक दाना भी नही निगल सकता मैं बहरा होता जा रहा हूँ मेरे शरीर में इतने घाव है कि हर एक घाव दूसरे घाव को जानता हैं इतनी यातना के बाद भी मैं नही मरूँगा मैं जीवित बच सकता हूँ समाज से निकली बोली से और बन्दूक से निकली गोली से भी पर एक रोज़ मैं मारा जाऊँगा इस भीड़-भाड़ भरी दुनिया में अकेलेपन से ll ©Manthan Srivastava #Vasant2022 #alone