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समाज और इनकी सोच, संकीर्ण मानसिकता को दर्शाते हैं,

समाज और इनकी सोच, संकीर्ण मानसिकता को दर्शाते हैं,
इक्कीसवीं सदी के लोग हैं सभी, रूढ़िवादी सोच दिखाते हैं।


एक तरफ तो  बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, नारा ये लगाते हैं,
कुंठित समाज के  लोग अभी भी, भ्रूण परीक्षण  करवाते हैं।


दहेज प्रथा अभिशाप कहकर, समाज के ठेकेदार बन जाते हैं,
लोलुपता बढ़ जाती इनकी, जब ख़ुद बेटे का ब्याह रचाते हैं।


ऐसे समाज के  लोगों की, हमें  मानसिकता बदलनी होगी,
मन घृणित होता यह सोचकर, हम किस समाज से आते हैं। 👉 ये हमारे द्वारा आयोजित प्रतियोगिता संख्या - 23. है, आप सब को दिए गए शीर्षक के साथ Collab करना है..!

👉 आप अपनी रचनाओं को आठ पंक्तियों (8)  में लिखें..!

👉Collab करने के बाद Comment box में Done जरूर लिखें,और Comment box में अनुचित शब्दों का प्रयोग न करें..!

👉 प्रतियोगिता में भाग लेने की अंतिम समय सीमा कल सुबह 11 बजे तक की है..!
समाज और इनकी सोच, संकीर्ण मानसिकता को दर्शाते हैं,
इक्कीसवीं सदी के लोग हैं सभी, रूढ़िवादी सोच दिखाते हैं।


एक तरफ तो  बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, नारा ये लगाते हैं,
कुंठित समाज के  लोग अभी भी, भ्रूण परीक्षण  करवाते हैं।


दहेज प्रथा अभिशाप कहकर, समाज के ठेकेदार बन जाते हैं,
लोलुपता बढ़ जाती इनकी, जब ख़ुद बेटे का ब्याह रचाते हैं।


ऐसे समाज के  लोगों की, हमें  मानसिकता बदलनी होगी,
मन घृणित होता यह सोचकर, हम किस समाज से आते हैं। 👉 ये हमारे द्वारा आयोजित प्रतियोगिता संख्या - 23. है, आप सब को दिए गए शीर्षक के साथ Collab करना है..!

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👉 प्रतियोगिता में भाग लेने की अंतिम समय सीमा कल सुबह 11 बजे तक की है..!