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कांपते हाँथों से सुमित्रा फूलों की माला पकड़े सामने

कांपते हाँथों से सुमित्रा फूलों की माला पकड़े सामने तस्वीर पे चढ़ा देती हैं और मन ही मन ख़ुद को कोसते हुए कहती हैं ... मैं ये नहीं करना चाहती अम्मा जी..! पर मैं मज़बूर हूँ । आपने ज़िद में आके वो काम कर दिया जिसकों सोच कर आज भी मेरी रूह कांप जाती हैं। क्या मिला आपको ये सब कर के और हम सब ...!   
                डर लगता हैं अम्मा जी कहीं हमारे छोटी सी भी खुशी को कही नज़र ना लग जाये इसलिये खुल कर ख़ुश नही हो पाते! क्यूँ अम्मा जी क्या कसूर हैं हमारा...? इतना दर्द आपने दिया! वो भी उनकों जो आपके ही अपने थे...।"

©# musical life ( srivastava )
  #नाओमी💞 एक अनकहीं दास्ताँ 💞
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भारतीय भाषाओमें अनगिनत रचनाएं पढ़ें, लिखें और सुनें, बिलकुल निःशुल्क! एक अजनबी Neel Suresh Gulia

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