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किसी भी कविता क़े लिए ईमानदारी कोई बुनियादी शर्त न

किसी भी कविता क़े लिए  ईमानदारी कोई
बुनियादी शर्त नहीं  बन सकती 
क्योंकि कल्पना  मे  काव्य बिना पंखो क़े ही
उड़ान भरता है
अक्सर कविता लिख लेने क़े  उपरान्त  कवि अपनी कविता की
 सार्थकता ढूंढ़ने  लगता है
क्योंकि  समझ और तर्क का  कविता से  दूर दूर
तक कोई लेना देना नहीं है
एक उद्विगन  भयाकुल निराश  संवेदनशील  और घुटन
से  ओतप्रोत  व्यक्तित्व  ही सुंदर काव्य  रचना
मे निपुणता हासिल  कर लेता है

©Parasram Arora काव्य का उदगम
किसी भी कविता क़े लिए  ईमानदारी कोई
बुनियादी शर्त नहीं  बन सकती 
क्योंकि कल्पना  मे  काव्य बिना पंखो क़े ही
उड़ान भरता है
अक्सर कविता लिख लेने क़े  उपरान्त  कवि अपनी कविता की
 सार्थकता ढूंढ़ने  लगता है
क्योंकि  समझ और तर्क का  कविता से  दूर दूर
तक कोई लेना देना नहीं है
एक उद्विगन  भयाकुल निराश  संवेदनशील  और घुटन
से  ओतप्रोत  व्यक्तित्व  ही सुंदर काव्य  रचना
मे निपुणता हासिल  कर लेता है

©Parasram Arora काव्य का उदगम

काव्य का उदगम