ये गगन गवाह हैँ कि चाँद की मुखरित चांदनी में, कितनो के अधर से अधर मिले कितने प्रिय औऱ प्रियतमा के अभिसार हुए... कितने मन से मन मिलकर एकाकार हुए पर नभ ने ये भी तो अपनी नंगी आँखों से देखा होगा कि जग में कितने व्यभिचार हुए... ... अमावसी रातो में कितने बलात्कार हुए कितने ह्रदय टूटे कितने मन मिटे... कितने अटल प्रणय के, बंधन टूटे फिर भी इस बेरहम आसमान का न ह्रदय पसीजा न उसकी आँख से कोई आँसू बहा k गगन की गवाही.......