तेरे नैन पढ़ कर तेरी आँखों को मैंने ख्वाब जो अब तक पाले हैं कहने से क्यूँ डरता है जो है मैंने पलकों के पीछे ही परखे हैं सच्चाई को तेरी तुझे दिखाऊँ आईना तेरा जो मैं बन पाऊँ उतना न जानूँ अपने नैनों को जितना तेरे नज़रों को माने हैं तु जो गहराई में इतना डुबा है कि समंदर के मोती को पकड़ सके वो ख्वाब जो अश्कों में तेरे पलते हैं खुद से भी ज्यादा तु मुझे जाने है अपने खुदा के चाह में रम जाते जो रब अपना मुझमे ही देख पाते हो दूरी की मजबूरी क्या छिपा पाओगे यूँ कब तक हमसे नज़रें चुरा पाओगे? ©Deepali Singh तेरे नैन