मुद्दतें गुजरी है धड़कनों को समझने में, वक्त भी दिया अंधेरे उजाले बदलने में, उलझ गया हूँ कई दफ़ा ऐसी बातों में.. जानना हो सच गर, तो तुम भी उलझ लेना। आसां नही है धड़कनों को समझ लेना, माया भरे मन व मंसूबों को परख लेना, बहका हूँ कई दफ़ा झूठे चेहरों में.. फुर्सत हो तुम्हें अगर, तो तुम भी उलझ लेना। चक्रव्यूह सा हुआ यह धड़कनों का सिलसिला, सब साँसों में धधक रहा जलन का जलजला, जलाया गया हूँ कई दफ़ा नजरों से.. यकीं ना हो अगर, तो तुम भी उलझ लेना। कवि आनंद दाधीच 'दधीचि' भारत ©Anand Dadhich #धड़कनों_को_समझना #kaviananddadhich #poetananddadhich #poetsofindia #eveningthoughts