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हर सफर में अंधेरा , हर सफर में रात क्यों है किसकी

हर सफर में अंधेरा , हर सफर में रात क्यों है
किसकी लगी है नजर,आंखों में बरसात क्यों है

ये वक्त,ये सफर,ये मंजिल,ये तन्हाई,ये खामोशी
जिंदगी में एक जैसे सबके हालात क्यों हैं 

शहर दौड़ कर पूछता, वीराने गांव से अक्सर
मेरी रौशनी में लूटे तेरे जज़्बात क्यों हैं

बड़ी उलझन में गुजरी, भीड़ कि ये ख़ामोशी
बाहर शोर का सन्नाटा,भीतर खोखले अल्फाज क्यों हैं

बड़ी संजीदा रही हैं, शक्सियत तुम्हारी
फिर लच्छेदार ये तुम्हारी, सारी बात क्यों है
हर सफर में................।।
राजीव

©samandar Speaks
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