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वहां से जगो जहां जग को लगे, गहरी निद्रा में हो। वह

वहां से जगो
जहां जग को लगे,
गहरी निद्रा में हो।
वहां से उठो
जहां दुनियां को लगे,
टूटकर बिखरा हो।
हर पंक्ति क्रमबद्ध है इन्सानों का,
अंतिम पंक्ति है भिखारियों का।
इंसान होकर भी जो अलग है इन्सानों से
ये दुनियां दीवानी है पैसे का।
फासला हौसला ना बढ़ाये
तो फ़ायदा क्या है,
मनुष्य तन पाने का ।
क्रमबद्ध है पंक्ति इन्सानों का।

©#suman singh rajpoot
  #FallAutumn वहां से जगो
जहां जग को लगे,
गहरी निद्रा में हो।
वहां से उठो
जहां दुनियां को लगे,
टूटकर बिखरा हो।
हर पंक्ति क्रमबद्ध है इन्सानों का,
अंतिम पंक्ति है भिखारियों का।

#FallAutumn वहां से जगो जहां जग को लगे, गहरी निद्रा में हो। वहां से उठो जहां दुनियां को लगे, टूटकर बिखरा हो। हर पंक्ति क्रमबद्ध है इन्सानों का, अंतिम पंक्ति है भिखारियों का। #Thoughts #sumansinghrajpoot

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