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"रोटी" सबसे सस्ती चीज है, मग़र यक़ीनन कीमती भी कोई क

"रोटी"
सबसे सस्ती चीज है, मग़र यक़ीनन कीमती भी
कोई कैसे लाता हैं, क्या क्या करता हैं,
किसी के हिस्से जरूरत से ज्यादा हैं,
तो किसी के हिस्से एक भी मयस्सर नही, इत्तेफाक ही तो हैं,
या कहूँ इसे किस्मत,लाचारी या बेरोजगारी
इसे जो भी नाम दो मज़बूरी के सब इसी पर ख़त्म
लोग मीलो चलने को तैयार हैं, हत्या भी होती कई बार हैं,
लोग भटक रहे हैं, अन्नदाता तरस रहे हैं,
पर ने नेताओं को भनक ही नही बस मख़मल के गद्दे
छप्पन भोग राजसी ठाठ बाठ बड़े वाहन
औऱ देश की हो रही अवनति, सब बेबस लाचार
अब क्या ही कहूँ नेता जी ठहरे महान
रोटी की भूख वोटों के वक़्त नज़र आती हैं,
सारी परेशानी तब नेता जी को दिख जाती हैं,
मग़र वोटिंग का सिलसिला कुछ दिनों का ही
जीवन के बरस की कोई गिनती ही नही
नेता जी रोटी बहुत हैं क़ीमती
पर आपका ध्यान में बस वोटों की गिनती
पर हर बार जब जब अति होती तब तब होता हैं आंदोलन,
कहीं इस बार ये आंदोलन का आधार ये सस्ती रोटी न बन जाये,
अभी जाग जाइये, युवाओं पर भरोसा दिखाइए,
रोटी से ही अपने राष्ट्र का भविष्य बनायेंगे,
फिर नई तरक़्क़ी, नई आशाएँ, नई तरह की रोटी
नया ही अपना फिर राष्ट्र बनाये, सस्ती रोटी से ही पहचान बनाये।
विवेक सिंह राजावत।



 रोटी की कीमत नेताओ को समझ नही आती।
"रोटी"
सबसे सस्ती चीज है, मग़र यक़ीनन कीमती भी
कोई कैसे लाता हैं, क्या क्या करता हैं,
किसी के हिस्से जरूरत से ज्यादा हैं,
तो किसी के हिस्से एक भी मयस्सर नही, इत्तेफाक ही तो हैं,
या कहूँ इसे किस्मत,लाचारी या बेरोजगारी
इसे जो भी नाम दो मज़बूरी के सब इसी पर ख़त्म
लोग मीलो चलने को तैयार हैं, हत्या भी होती कई बार हैं,
लोग भटक रहे हैं, अन्नदाता तरस रहे हैं,
पर ने नेताओं को भनक ही नही बस मख़मल के गद्दे
छप्पन भोग राजसी ठाठ बाठ बड़े वाहन
औऱ देश की हो रही अवनति, सब बेबस लाचार
अब क्या ही कहूँ नेता जी ठहरे महान
रोटी की भूख वोटों के वक़्त नज़र आती हैं,
सारी परेशानी तब नेता जी को दिख जाती हैं,
मग़र वोटिंग का सिलसिला कुछ दिनों का ही
जीवन के बरस की कोई गिनती ही नही
नेता जी रोटी बहुत हैं क़ीमती
पर आपका ध्यान में बस वोटों की गिनती
पर हर बार जब जब अति होती तब तब होता हैं आंदोलन,
कहीं इस बार ये आंदोलन का आधार ये सस्ती रोटी न बन जाये,
अभी जाग जाइये, युवाओं पर भरोसा दिखाइए,
रोटी से ही अपने राष्ट्र का भविष्य बनायेंगे,
फिर नई तरक़्क़ी, नई आशाएँ, नई तरह की रोटी
नया ही अपना फिर राष्ट्र बनाये, सस्ती रोटी से ही पहचान बनाये।
विवेक सिंह राजावत।



 रोटी की कीमत नेताओ को समझ नही आती।