मेरा ह्रदय किसी अवकाश प्राप्त ईश्वर की तरह इन दिनों अवकाश की मुक्त साँसे ले रहा है और उसकी मेरे प्रति उपेक्षा की अवधि भी बद्ती जा रही है तभी तो मेरा ह्रदय निअंकुश होकर जो नहीं करना था वो भी क़र रहा है और को करना था उससे आँख भी चुरा रहा है ©Parasram Arora निरंकुश.......