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जब कोई मुझसे पूछेगा दिखती कैसी तेरी दिलरुबा है तब

जब कोई मुझसे पूछेगा दिखती कैसी तेरी दिलरुबा है
तब कैसे असंख्य शब्दों,चित्रों, कल्पनाओं का बखान हो पायेगा
कायनात के तमाम उदाहरण भी मुझे अल्प प्रतीत होते है
शुरू कहां से करे इसी उहापोह में ही आफताब मूक रह जायेगा !

मसला ये नहीं कि उनके रूपलावण्य के प्रतिमान अभी गढ़े नहीं गये
मसला ये भी नहीं कि सौंदर्य के ऐसे गिरि कभी चढ़े नहीं गये
आतुरता मेरी इसमें है कि वो तिल मेरे चुम्बन कब स्वीकार करेगा
मानेगा अवश्य ही किन्तु पहले बड़ा रूठेगा, दिल बहुत बेकरार करेगा
अब कैसे इस अद्भुत सौंदर्य का निजी बखान आम हो पायेगा
शुरू कहां से करे इसी उहापोह में अम्बर का सूर्य भौंर से शाम हो जायेगा !

विचारों से विचार करें गर तो हर विचार वहां पहुंच थम जाता है
सौंदर्य  की  शीतलता  ऐसी  "सूरज" भी  छू ले तो जम जाता है
क्या  बताऊं  पूछने  वालों को कि दिखती कैसी मेरी दिलरुबा है
दिल कितना ही हो व्याकुल, शब्द कोई जुबां पर डोल न पायेगा
मेरे चेहरे से पढ़ सको तो पढ़ लो वो ललित छवि, मुख तो नि:संदेह कुछ बोल न पायेगा ! जब कोई मुझसे पूछेगा दिखती कैसी तेरी दिलरुबा है
तब कैसे असंख्य शब्दों,चित्रों, कल्पनाओं का बखान हो पायेगा
कायनात के तमाम उदाहरण भी मुझे अल्प प्रतीत होते है
शुरू कहां से करे इसी उहापोह में ही आफताब मूक रह जायेगा !

मसला ये नहीं कि उनके रूपलावण्य के प्रतिमान अभी गढ़े नहीं गये
मसला ये भी नहीं कि सौंदर्य के ऐसे गिरि कभी चढ़े नहीं गये
आतुरता मेरी इसमें है कि वो तिल मेरे चुम्बन कब स्वीकार करेगा
जब कोई मुझसे पूछेगा दिखती कैसी तेरी दिलरुबा है
तब कैसे असंख्य शब्दों,चित्रों, कल्पनाओं का बखान हो पायेगा
कायनात के तमाम उदाहरण भी मुझे अल्प प्रतीत होते है
शुरू कहां से करे इसी उहापोह में ही आफताब मूक रह जायेगा !

मसला ये नहीं कि उनके रूपलावण्य के प्रतिमान अभी गढ़े नहीं गये
मसला ये भी नहीं कि सौंदर्य के ऐसे गिरि कभी चढ़े नहीं गये
आतुरता मेरी इसमें है कि वो तिल मेरे चुम्बन कब स्वीकार करेगा
मानेगा अवश्य ही किन्तु पहले बड़ा रूठेगा, दिल बहुत बेकरार करेगा
अब कैसे इस अद्भुत सौंदर्य का निजी बखान आम हो पायेगा
शुरू कहां से करे इसी उहापोह में अम्बर का सूर्य भौंर से शाम हो जायेगा !

विचारों से विचार करें गर तो हर विचार वहां पहुंच थम जाता है
सौंदर्य  की  शीतलता  ऐसी  "सूरज" भी  छू ले तो जम जाता है
क्या  बताऊं  पूछने  वालों को कि दिखती कैसी मेरी दिलरुबा है
दिल कितना ही हो व्याकुल, शब्द कोई जुबां पर डोल न पायेगा
मेरे चेहरे से पढ़ सको तो पढ़ लो वो ललित छवि, मुख तो नि:संदेह कुछ बोल न पायेगा ! जब कोई मुझसे पूछेगा दिखती कैसी तेरी दिलरुबा है
तब कैसे असंख्य शब्दों,चित्रों, कल्पनाओं का बखान हो पायेगा
कायनात के तमाम उदाहरण भी मुझे अल्प प्रतीत होते है
शुरू कहां से करे इसी उहापोह में ही आफताब मूक रह जायेगा !

मसला ये नहीं कि उनके रूपलावण्य के प्रतिमान अभी गढ़े नहीं गये
मसला ये भी नहीं कि सौंदर्य के ऐसे गिरि कभी चढ़े नहीं गये
आतुरता मेरी इसमें है कि वो तिल मेरे चुम्बन कब स्वीकार करेगा

जब कोई मुझसे पूछेगा दिखती कैसी तेरी दिलरुबा है तब कैसे असंख्य शब्दों,चित्रों, कल्पनाओं का बखान हो पायेगा कायनात के तमाम उदाहरण भी मुझे अल्प प्रतीत होते है शुरू कहां से करे इसी उहापोह में ही आफताब मूक रह जायेगा ! मसला ये नहीं कि उनके रूपलावण्य के प्रतिमान अभी गढ़े नहीं गये मसला ये भी नहीं कि सौंदर्य के ऐसे गिरि कभी चढ़े नहीं गये आतुरता मेरी इसमें है कि वो तिल मेरे चुम्बन कब स्वीकार करेगा #yqbaba #कविता #yqdidi #yqhindi #कविताएँज़िंदारहतीहैं #surajaaftabi