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रिश्ते में चालाकी कैसी, इतनी भी बे-बाक़ी कैसी,

रिश्ते  में  चालाकी कैसी,
इतनी भी बे-बाक़ी कैसी,

थोड़ी समझ दिखाई होती, 
लहज़े  में  गुस्ताख़ी कैसी,

बार-बार करते हो गलती, 
बार-बार फिर माफ़ी कैसी,

बे-ग़ैरत हो मनोदशा जब, 
झूठ-मूठ की झाँकी कैसी,

प्राप्त सदा  पर्याप्त लगे ना,
लोभ के घर नाकाफ़ी कैसी,

'गुंजन' चल अपने पैरों पर, 
कदम-कदम बैसाखी कैसी,
 --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
     चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra #रिश्ते में चालाकी कैसी#
रिश्ते  में  चालाकी कैसी,
इतनी भी बे-बाक़ी कैसी,

थोड़ी समझ दिखाई होती, 
लहज़े  में  गुस्ताख़ी कैसी,

बार-बार करते हो गलती, 
बार-बार फिर माफ़ी कैसी,

बे-ग़ैरत हो मनोदशा जब, 
झूठ-मूठ की झाँकी कैसी,

प्राप्त सदा  पर्याप्त लगे ना,
लोभ के घर नाकाफ़ी कैसी,

'गुंजन' चल अपने पैरों पर, 
कदम-कदम बैसाखी कैसी,
 --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
     चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra #रिश्ते में चालाकी कैसी#

#रिश्ते में चालाकी कैसी# #कविता