लगता है धरा श्रृंगार किये बैठी ओढ़कर कर धानी चुनर दमकती मुख पर लालिमा बिखरी किसलय से बालों को महकाती मस्त हवा बसंती, क्या कंचन काया,और मृगनयनी मूरत "निश्छल" मुस्कान जमी अधरों पर उल्लसित सब नभ,जल ,खग,विहाग किरण बिखरती स्वर्णिंम लहरों पर करने को आतुर स्वागत नव ऋतू का अंचल पर उषा की सुर्ख अरुणिमा , माथे पर ओस की चांदी सा गहना बिखरी नभ में किरणों की लालिमा "किसलय कृष्णवंशी "निश्छल"