किस्सा रसकपूर - रागनी 2 तर्ज : मैंने तुझको चाहा ये है मेरी मेहरबानी होSS जगतसिंह राजा की राणी, मैं सूँ रसकपूर। मेरी मंजिल महफिल कोन्या, मनै जाणा सै धणी दूर ।। मेरे पति गए, लड़ने लड़ाई। पाछे तै आकै तनै, करदी चढ़ाई। मानज्या नै भाई ना कर सेना का गरूर।। मेरी मंजिल महफिल कोन्या, मनै जाणा सै धणी दूर ।। मैं एक अबला, नार अकेली। करकै चढ़ाई, तनै आग में धकेली। संग में कोन्या मन का मेली, मेरी अँखियों का नूर।। मेरी मंजिल महफिल कोन्या, मनै जाणा सै धणी दूर।। हुमायूँ बण्या था भाई, कर्मवती का। फर्ज निभादे तू भी, मर्द जती का। रसकपूर सती का धागा करले नै मंजूर।। मेरी मंजिल महफिल कोन्या, मनै जाणा सै धणी दूर।। प्रेम की राखी, ल्याई मैं बुणकै। गुरुजनों की शिक्षा नै गुणकै। आनन्द कुमार का गाणा सुणकै, चढग्या नया सरुर।। मेरी मंजिल महफिल कोन्या, मनै जाणा सै धणी दूर।। गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया © 2020-21 #हरयाणवी_रागनी #meltingdown