हैं अंजान रास्ते, पर मेरी मंजिल एक हैं। चल पड़ी हूं जिधर, राहें अनेक हैं।। मिलेगी मंजिल मेरी, हैं यें हौसला मेरा, जीत की ललक हैं, ना मन में कोई द्वेष हैं ठान लिया एक बार, तो जीत कर ही दम लूंगी, करूंगी मंजिल फतेह, जिद की हुंकार भरूंगी। फ़र्क नहीं कौन क्या सोचता हैं मेरे बारे में, चल पड़ें हैं कदम, तो मंजिल पर ही रुकुंगी। राहें हों कैसी भी, अब ना मैं पीछे हटूंगी, हों परिस्थितियां विषम, सम उसको करूंगी। एक बार बज़ गया बिगुल, तो रुकेगा नहीं, इतिहास में अपना नाम अमर करूंगी।। #अनजान_रास्ते,_मंज़िल_एक_team_alfaz #newchallenge There is new challenge of poem/2 line/4 line in whatsapp group (link in bio) Today's Topic is अनजान रास्ते, मंज़िल एक