स्मृतियों की झिलमिलाती रौशनी मे आशा की रात रानी एक बेहतर सुबह की प्रतिक्षा कर रही है संभव है जीवन की मार से कुम्हालाया मुरझाया उल्लास फिर से अंगड़ाईया लेने के लिये तैयार हो जाए या ये भी हो सकता है कि मुझे रूप रस गंध और स्पर्श की रंगशाला.. मे एक बार फिर से दाखिला मिल जाये ©Parasram Arora रंगशाला