व वह चाहता है हर सर, झुके उसके कदमो मे। (तानाशाह जो है) मेरा जमीर, मुझे झुकने नही देता। मुझे,मेरे लोगो को, बेजूबा समझता है। ना जाने वो खुद को, क्यो खुदा समझता है। वह फिरौन है,फिरदौस है, उसके सर पर आशबाब है। मेरे सर पर खुला आसमान, दरख्तो का वोट है। जमाना सहलाता रहा बदन,और मेरे सीने पे चोट है। अब वह मेरे सम्मान का गुरूर, मेरे सर से उतारेगा। सुना हू हंसती हुई, हमारी बस्ती ऊजाडेगा। तेरे मक्कारी को, सरेआम कोई कह ना जाये। ऊजाड सकता है तो जल्दी कर,कही ऐ मल्लाल सीने मे रह ना जाऐ। क़िस्मत कहा बदली है, कभी रो कर । वक्त रहता नही, कीसी एक पर मेहरबा हो कर। लघु काव्य संग्रह -कांटे पिरोते- ऐ -फूल से ऑसू ©हरिकेश यादव मक्कार तानाशाह #Hope