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उनकी बातें सोच कर मुस्कुराती हूं चाय बनाते-बनाते क

उनकी बातें सोच कर मुस्कुराती हूं
चाय बनाते-बनाते कहां खो जाती हूं
दिल के कोने में तेरी तस्वीर छुपानी पड़ती है
जालिम दुनिया से अपनी जागीर छुपानी पड़ती है
सालों से दर्पण पर धूल जमी कितनी
अब आईना देखकर मैं लज्जाती हूं
उनको क्या लेना देना कैसे कटते हैं रात और दिन
तक झांक करने वालों से तकदीर छुपानी पड़ती है
प्यार की कोई सीमा नहीं मैं डूबी प्रेम के सागर में
कल कानों को कुछ भी रास ना आता था
फोन की घंटी सुन के भागी आती हूं
तुम और हम कैद ये दुनिया की दीवारों में
बंधन से है मुक्ति के लिए शमशीर छुपानी पड़ती है
वो मेरी तस्वीर से खुश हो जाते हैं
तस्वीर भेजने से मैं क्यों कतराती हूं
चौकन्ना रहना होगा चेहरा पढ़ लेती है दुनिया
घोल के ग़ज़लों में अपनी तहरीर छुपानी पड़ती है
कल तक मन और तन का ध्यान ना आया
अनजाने में तन को निहार जाती हूं
कच्चा का घड़ा बनाते हैं अभी सोहनी के दुश्मन
आज के युग में हीर को भी  रांझा छुपाना पड़ता है
आप‌ने क्या ख़ूबी देखी है मैं  ना जानूँ
अब यह हाल है खुद पर मैं इतराती हूं
कल रात वो सपने में आया तस्वीर मिली थी बिस्तर में 
कब दूरी दूर करेगा वो क्या लिखा मेरे मुकद्दर में

©Shubhanshi Shukla
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