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Shubhanshi Shukla

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Shubhanshi Shukla

तंग गलियाँ



तंग गलियों से ख़्वाब गुज़रते देखे हैं 
सालों से सँभाले लम्हे बिखरते देखे हैं

मुझसे आँख चुराने लगे हैं लोग सभी
 नुक्कड़ पर दो बातें करते देखे हैं

सब को दिख जाती है बाहर की चोट
 दिलों के दर्द चेहरे पे उभरते देखे हैं

घर की चार दीवारों में जो थे महफूज़

अपनों की आहट से डरते देखे हैं

जो उन की आवाज़ से खिल जाते थे कभी
 कोने में वो बदन सिहरते देखे हैं

©Shubhanshi Shukla
  तंग गलियाँ 
#shubhu #daynamicshubhu  #sad #loveline

तंग गलियाँ #shubhu #daynamicshubhu #SAD #loveline #Poetry

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Shubhanshi Shukla

flower sms shayari quotes 

कल कई ख़्वाब दिखाता है मुझे 
आज अनजान सताता है मुझे

हम-सफ़र मिल गया बिना जाने 
अपनी दुनिया में बुलाता है मुझे

मेरी उलझन से वो है वाक़िफ़
 हर नई राह दिखाता है मुझे

जब भी दिल धक् से बैठ जाता है 
एक चट्टान बनाता है मुझे

मुझ को दुनिया की नज़र का डर 
अपने दामन में छुपाता है मुझे

वो मेरे रूप का पुजारी है 

आईना जाने क्यूँ भाता है मुझे

©Shubhanshi Shukla
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Shubhanshi Shukla

पत्थरों के शहर में कच्चे मकान कौन रखता है,
 आजकल हवा के लिए रोशनदान कौन रखता है...

अपने घर की कलह से फुरसत मिलें तो सुनें, 
आजकल पराई दीवार पर 'कान' कौन रखता है...

खुद ही पंख लगाकर उड़ा देते हैं चिड़ियों को, 
आज कल परिंदों में अपनी 'जान' कौन रखता है...

हर चीज मुहैया है मेरे शहर में किश्तों पर,
 आजकल हसरतों पर लगाम कौन रखता है...

बहलाकर छोड़ आते हैं वृद्धाश्रम में मां-बाप को,
 आजकल घर में पुराना सामान कौन रखता है...

सबको दिखता है दूसरों में इक बेईमान इंसान,
 खुद के भीतर मगर अब ईमान कौन रखता है...

*फिजूल की बातों पे सभी करते हैं वाह वाह, 
अच्छी बातों के लिये अब जुबान कोम रखता है...

©Shubhanshi Shukla
  #Apocalypse
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Shubhanshi Shukla

अकेला

नए शहर में हर एक शख़्स पराया था 
खेल था क़िस्मत का जो यहाँ पे लाया था

अपने लिए नया रास्ता ढूँढा था मैंने 
क़िस्मत ने जब अपना हाथ छुड़ाया था

मुझ पर हँसने वाले यहाँ भी आ पहुँचे 
जिन से कल अपना दामन बचाया था

बादल से पानी का रिश्ता नया नहीं 
आँखों में अश्कों को आज छुपाया था

खोट भरा है लोगों की सोच समझ में 
भोले भाले लोगों को जहर पिलाया था

आये दिन निर्दोष पे हमला होता है 
भीड़ में केवल मैंने शोर मचाया था

किधर से आया कहाँ गया नफ़रत का जुलूस 
सड़क किनारे खुद को अकेला पाया था

©Shubhanshi Shukla
  #safar #Life_experience #Life_changing #life® #life❤️ 
#daynamicshubhu  Nîkîtã Guptā

#safar #Life_experience #Life_changing life® life❤️ #daynamicshubhu Nîkîtã Guptā #Poetry

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Shubhanshi Shukla

मैं उसकी ना हो सकी और वो मेरा ना हो सका, 
एक रात ऐसा सोया तन्हाई में सवेरा ना हो सका।

मेरे ही पाले हुए साँप ने डंसा मुझे, 
जो निचोड़ सके जहर में वो सपेरा ना हो सका।

बहुत कोशिश की सुनार ने पीतल को रंगने की, 
मगर अफसोस, पीतल का रंग सुनहरा ना हो सका।

किसी और का इश्क़ रखा है उसकी गहराईयों में, 
मगर उसका इश्क़ मेरे इश्क़ से गहरा ना हो सका।

तय कर लिया था कि नहीं सुनूंगी मैं दिल की कोई,
 मगर मैं लाचार सुनती गयी, मैं बहरी ना हो सकी ।।

सोचा था भूला दूंगी मैं उस बेवफा को सदा के लिए,
 मगर मुझ पे किसी और की यादों का पहरा ना हो सका।

©Shubhanshi Shukla @sadline
#lovelife
#loveyou
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Shubhanshi Shukla

जब इंसान डूब जाता है, गम-ए- यार में
 फिर कुछ रखा नही होता मौसम-ए-बहार में

लड़के बदल लेते है नज़रे और प्यार भी 
लड़कियां नंबर तक नहीं बदल पाती इंतजार में



बस उसके सिवा मेरे पास आ जाते है सभी 
कुछ कमियां ही होंगी इस दिल की पुकार में



कोई आशिक थी जो अब शायर बन बैठी 
ये खबर भी कभी छपवा देना अखबार में



जीतने वालो ने फकत जीतना ही सिखा है
 पर जिंदगी ज्यादा सिखाती इश्क-ए-हार में 1

कोई बे-कोशिश ही उसे हासिल कर जायेगा
 मैने जान तक लुटा दी है, जिसके प्यार में

©Shubhanshi Shukla
  @sad quotes @shubhu 
@sadlove

@sad quotes @shubhu @sadlove #darbaredil

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Shubhanshi Shukla

हर शब्द माइल-ए-परवाज़ कीजिएगा 
कुर्बान हर तख़्त-ओ-ताज़ कीजिएगा


हो पढ़ लिया उनकी ग़ज़लों को अग़र
 जौन एलिया पर सदा नाज़ कीजिएगा

उम्र उनकी फ़क़त इम्तिहान में गुज़री
 ज़िंदगी न बसर हुई क्या काज़ कीजिएगा

जो गुज़रती नहीं वो जिंदगी गुज़ारी है
 ये जानकर ख़ुश कैसे मिज़ाज़ कीजिएगा

न आने वाले से ही मतलब थी उनको
 आने वालों को तो नज़रंदाज़ कीजिएगा

खामोशी से अदा हुई हर रस्म-ए-दूरी
 ना हंगामा बरपे यही रिवाज़ कीजिएगा

वो बस लिखते नहीं थे खून धूकते थे
 उनके दर्द का कैसे इलाज़ कीजिएगा

उनको यारों ने भी तो याद न रक्खा 
न चैन आया कभी क्या एतराज़ कीजिएगा

खुद को तबाह कर किया मलाल नहीं
 मुस्तक़बिल बोलते रहे कैसे बाज़ कीजिएगा

जौन एलिया बार-बार पैदा नहीं होते
 सुनिए इसका बेहद लिहाज़ कीजिएगा

©Shubhanshi Shukla
  #Isolation @shubhu #daynamicshubhu #sad
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Shubhanshi Shukla

उनकी बातें सोच कर मुस्कुराती हूं
चाय बनाते-बनाते कहां खो जाती हूं
दिल के कोने में तेरी तस्वीर छुपानी पड़ती है
जालिम दुनिया से अपनी जागीर छुपानी पड़ती है
सालों से दर्पण पर धूल जमी कितनी
अब आईना देखकर मैं लज्जाती हूं
उनको क्या लेना देना कैसे कटते हैं रात और दिन
तक झांक करने वालों से तकदीर छुपानी पड़ती है
प्यार की कोई सीमा नहीं मैं डूबी प्रेम के सागर में
कल कानों को कुछ भी रास ना आता था
फोन की घंटी सुन के भागी आती हूं
तुम और हम कैद ये दुनिया की दीवारों में
बंधन से है मुक्ति के लिए शमशीर छुपानी पड़ती है
वो मेरी तस्वीर से खुश हो जाते हैं
तस्वीर भेजने से मैं क्यों कतराती हूं
चौकन्ना रहना होगा चेहरा पढ़ लेती है दुनिया
घोल के ग़ज़लों में अपनी तहरीर छुपानी पड़ती है
कल तक मन और तन का ध्यान ना आया
अनजाने में तन को निहार जाती हूं
कच्चा का घड़ा बनाते हैं अभी सोहनी के दुश्मन
आज के युग में हीर को भी  रांझा छुपाना पड़ता है
आप‌ने क्या ख़ूबी देखी है मैं  ना जानूँ
अब यह हाल है खुद पर मैं इतराती हूं
कल रात वो सपने में आया तस्वीर मिली थी बिस्तर में 
कब दूरी दूर करेगा वो क्या लिखा मेरे मुकद्दर में

©Shubhanshi Shukla
  #Hriday  #love❤ #shubhu
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Shubhanshi Shukla

शैलपुत्री  ■

शैलराज पुत्री रूप में हुआ प्राकट्य है ।
शैलपुत्री जीवन को तिमिर से तार दे ।।
भ्रांत पड़े इस मन को देवी माँ शांत कर ।
बायें हाथ में कमल शांति का ही सार दे ।।
हौसला कभी भी जब बढ़ने लगे दुष्टों का ।
दायें हाथ में त्रिशूल दुष्टों को संहार दे ।।
नवरात्रि पर्व की यह प्रथम है अर्चना ।
हमको भी मैया भवसागर से तार दे ।।

©Shubhanshi Shukla
  #navratri #navratri 
#shailputrimaa 
#Shailputri 
#daynamicshubhi
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Shubhanshi Shukla

हृदय में बसती है माँ भक्ति तुम्हारी,
हृदय में बसती है माँ शक्ति तुम्हारी,
आ जाओ माँ दुर्गा करके सिंह सवारी
हर अड़चन दूर करो माँ संकट हारी।
आ गया नवरात्र माँ की भक्ति का त्यौहार ।
सज रहा है माँ भवानी का सुघर दरबार।।
रक्त वसना आभरण युत खुले कुंचित केश
सिंह पर शोभित सुकोमल शक्ति का आगार।।
उड़ रही है धूप फूलों की सुगंध सुवास
ला रहा उपहार कोई फूल कोई हार।।
ठनकता तबला सरंगी और बजता ढोल
कर रहे हैं भजन के स्वर भक्ति का संचार।।
हाथ गंदे जब हुए हमने क्षण में धो लिया
मन जो मैला हो रहा उसका अब करू मैं क्या?
बुद्धि दे ओ मेरी माँ, विनती और करू मैं क्या?
अंबे तुझसे करें दुआ ! हे जगदम्बे करो दया !
बोझ बढ़े धरती पर जो, फट प्रलय दिखाए वो भी
उसको न अपमानित कर, देवी को दुर्गा रहने दो
असुरों का संहार करे, दुर्गा “काली” बन जाए तो
कर सम्मान, दे दूं वरदान, हो जाऊं गर प्रसन्न
मान बढ़े तेरा भी निस दिन, सुख, समृद्धि,बसे कण-कण.
पाप-पुण्य में भेद बता दे, धर्म-कर्म का ज्ञान दे,
मेरे अंदर तू बैठी है, इतना मुझको भान दे।
फिर से मुझमें शक्ति भर दे, फिर से मुझमें जान दे,
नवजात शिशु-सा गोद में खेलूं, फिर बालक बन जाऊं माँ।
तू ही बता दे, किन शब्दों में, तुझको आज मनाऊं माँ,
अश्रुधार भरी आंखों से, किस विधि दर्शन पाऊं

©Shubhanshi Shukla
  #agni 
happy navratri

#agni happy navratri #Poetry

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