तेरी बस्ती अब हम छोड़कर निकलते है, दिल तो धड़कता है दम मगर निकलते है.. हो नही सकता है कारोबार जज़्बो का, चुप हम रहते है आँसू तो निकलते है.. कोई तो सजा मेरी भी अता हो जाये, बहरा ये जमाना है और लफ्ज निकलते है.. भूलकर नही भूला अब भी उन बातो को, जब भी भूलना सोचा हरे जख्म ही निकलते है.. बदनसीबी ऐसी की मौत भी नही आती, जब भी डूबना चाहा साहिल पर निकलते है.. कोई तुमसे क्या रखे मुंसिफी की उम्मीदे, हाथ में किसी के खंजर कातिल हम निकलते है.. हम क्या निभायेंगे उल्फतो की रस्मो को, सहरा(रेगिस्तान)का सफर लम्बा प्यासे हम निकलते है.. #safar