अदालत इस अदालत के कटघरी में गुनहगार कितने मासूम दिखते हैं अनजाने में किए हो या जानबूझकर उनके चेहरे कितने उदास दिखते हैं हज़ारों चक्कर लगाकर यहां के वो किस कदर से बेजान दिखते हैं यहां कोई छूटकर भी नहीं छूटता और कोई कैद में भी आजाद दिखते हैं कोई पढ़कर भी और कोई अनपढ़ भी यहां स्वेद पोशाक में भी अपराध दिखते हैं किसी की जिंदगी खत्म हो जाती हैं यहां और किसी पर बस इल्जाम दिखते हैं किसी का सच धरा का धरा रह जाता हैं और किसी के झूठ बिकते बेहिसाब दिखते हैं यहां हर रिश्ता कितना कमजोर पड़ जाता हैं अपने ही यहां अपने लिए जालसाज दिखते हैं क्या झूठ है और क्या सच है पता नहीं यहां सच के लड़ने वाले भी बेईमान दिखते है ©Anjaly Khare #snow अदालत #न्यायालय #न्यायशास्त्री #quaotes #poetcommunity #poetclub #poem✍🧡🧡💛