जब दूर होती है, तो कितनी ही बातें, कितने ही ख्याल होते हैं, सामने बैठकर बतियाने को, एक अरसे पर करीब आए,तो यह साथ ही बहुत होता है, हर एक क्षण को जीने को, यादें समेट आगे बढ़ जाने के। आश्वस्त करती आँखें होती हैं, परिस्थितियाँ समझ जाने को, मुस्कुराती,सहज-सी चुप्पी, सुनने-सुनाने,साथ गुनगुनाने को। मैं गुस्साती हूँ, रोष जताती हूँ, माँ पर, माँ समान बड़ी दीदी, बहन और अपनी जनी बेटी पर। इन सबमें,कुछ मेरा,मुझ जैसा है, इसलिए मैं इनसे सहज हो पाती हूँ, झल्लाती हूँ, चिल्लाती हूँ,अपनी कमजोरी जाहिर कर पाती हूँ, प्यार जताना नहीं आता, तो