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एक कल्पना पुष्प हो तुम पलास की; पर लगती गुलमोहर

एक कल्पना


पुष्प हो तुम पलास की;
पर लगती गुलमोहर हो! 
रश्मियों की लड़ियों में; 
मानों, कोई अप्सरा हो तुम !!

गुलाब भी जब मुरझा जॉय;
तब, खिलखिलाती कमल हो तुम। 
जेठ की कातिल तपिश में;
मानों, सावन की फुहार हो तुम !!

तेरें नयनों में दिखती अश्क;
मोतियों की कलाकार हो तुम। 
आखिर, सूरजमुजी से हँसते ये चेहरे तेरे तेरे;
मानों, मेरी चाह हो तुम !!

अमावस में घिरी हो, जब जिंदगी; 
उम्मीद की प्रकाश हो तुम ! 
मेरी हसरतों को अंजाम देने वाली:
‘एक कल्पना' हो तुम !!

©Saurav life
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