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मेरे माथे पे तिरा दिया बोसा, बहुत सुकून था उसमें

मेरे माथे पे तिरा दिया बोसा, बहुत सुकून था उसमें 
तुम अब नहीं हो एहसास है मुझे, तुम्हें याद नहीं है..!

मिरे मुफलिसी में भी, अमीरी का एहसास जैसे रहा 
दिले बेज़ार मरहम था,मुझे ख़बर है तुम्हें याद नहीं है.!

मेरे मुस्तक़बिल में इतना ही लिखा था साथ तिरा भी 
गुरबत में अमीरी का एहसास रहा,तुम्हें याद नहीं है.!

मिरे सपनों,ख़्वाहिशों की उड़ान थीं तुमसे,जानती हो 
सुकून अब नहीं साथ याद है मुझे, तुम्हें याद नहीं है.!

©Shreyansh Gaurav #gazal 
#बोसा
मेरे माथे पे तिरा दिया बोसा, बहुत सुकून था उसमें 
तुम अब नहीं हो एहसास है मुझे, तुम्हें याद नहीं है..!

मिरे मुफलिसी में भी, अमीरी का एहसास जैसे रहा 
दिले बेज़ार मरहम था,मुझे ख़बर है तुम्हें याद नहीं है.!

मेरे मुस्तक़बिल में इतना ही लिखा था साथ तिरा भी 
गुरबत में अमीरी का एहसास रहा,तुम्हें याद नहीं है.!

मिरे सपनों,ख़्वाहिशों की उड़ान थीं तुमसे,जानती हो 
सुकून अब नहीं साथ याद है मुझे, तुम्हें याद नहीं है.!

©Shreyansh Gaurav #gazal 
#बोसा