वो हँसती भी हैं,हँसाती भी हैं। गुनगुनाती भी हैं,गाती भी हैं। मासूम भी हैं,खतरनाक भी हैं। खिलखिलाकर नाचती ओर नचाती भी हैं। समझती भी हैं, समझाती भी हैं, बड़ा खुलकर बताती भी हैं। बातो का जाल तो नही आता, फिर भी बातें कर जाती हैं। बच्चों संग बच्ची और बड़ो संग बड़ी बन जाती हैं। मखमल हैं,पर मामूली नही, हर किसी के मन को भा जाती हैं। सही को आगे,और गलत को रास्ते पर ले आती हैं। सबसे निभाते निभाते खुद को भी याद रख पाती हैं वो। सबसे न्यारी होकर भी, सभी के साथ चलती हैं। ©अर्पिता #जिगरी