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जीवन के इस आहाते में, है शेष अल्प दिन खाते में,

जीवन के इस  आहाते में,
है शेष अल्प दिन खाते में,

ये  रोक नहीं पाता बारिश, 
हैं  छिद्र बहुत इस छाते में,

ख़्वाहिश भी कर लेता पूरी,
बस देख के  आते-जाते में,

भ्रम जिंदा है शायद मुझमें, 
मिलता  सुकून जगराते में,

ये नाम बड़ाई का चक्कर,
बेकार  है  रिश्ते  नाते  में,

ख़ुद ही है खातेदार फक़त, 
लिख देता गड़बड़ खाते में,

मिल जाते हैं सच्चा मुर्शिद,
खिल उठे पुष्प मुरझाते में,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
   चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra #शेष अल्प दिन खाते में#
जीवन के इस  आहाते में,
है शेष अल्प दिन खाते में,

ये  रोक नहीं पाता बारिश, 
हैं  छिद्र बहुत इस छाते में,

ख़्वाहिश भी कर लेता पूरी,
बस देख के  आते-जाते में,

भ्रम जिंदा है शायद मुझमें, 
मिलता  सुकून जगराते में,

ये नाम बड़ाई का चक्कर,
बेकार  है  रिश्ते  नाते  में,

ख़ुद ही है खातेदार फक़त, 
लिख देता गड़बड़ खाते में,

मिल जाते हैं सच्चा मुर्शिद,
खिल उठे पुष्प मुरझाते में,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
   चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra #शेष अल्प दिन खाते में#