" तेरे बग़ैर उन रातों का क्या होगा ,
जो चश्म-ए-दीद हैं अब उन ख़्वाबों का क्या होगा ,
बात की बात हैं उन इरादों का क्या होगा ,
कुर्बत बा-मुश्किल हैं तेरे बग़ैर फिर उन जंद सासों का क्या होगा . "
--- रबिन्द्र राम
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