नीरसता की विकल वेदना और मन घबराया सा है स्वप्न अनेको लेकर बैठा लेकिन अब सब जाया सा है एक उठती चिंगारी देखो फूंक रही है अपना ही घर अब पिछले दुख वाला पल फिर से यूं दोहराया सा है। नीरसता की विकल वेदना और मन घबराया सा है बहुत बोलने वाले देखो अब सी लेते हैं होठों को अब तुम देखो नीरसता में बदल रहे इन लोगों को सम्मुख बोलो सहज स्वरों में इसमें क्या दोराया सा है बोल सको तो मीठा बोलो वरना सब कुछ जाया सा है नीरसता की विकल वेदना और मन घबराया सा है बात एक है सब कुछ दुख सुख एक लालची माया का है अपने भीतर उसके भीतर क्या अंतर सब कुछ अपनी काया सा है मनुज मनुजता के बंधन में अब तो देखो बध जाओ तुम बाकी सब ठुकराया सा है नीरसता की विकल वेदना और मन घबराया सा है ©उपकार वर्मा #नीरसता