"रात" रात अभी तक़रीब आधी थी। जनता सोने के करीब थी। कुछ सो चुके थे तो कुछ सोने की तैयारी में थे। कुछ घरों में तो कुछ सड़को के गलियारी में थे। नींद गहरी थी सपनें की चाह में बिस्तर की राह में। अपनो के साथ में अपनो के बाद उनकी याद में। क्योंकि रात अभी तक़रीब आधी थी। वो सड़क के कोने वाली दुकान। वो मिश्रा जी का किराए का मकान। सब शान्ति के आग़ोश में गुम सा गया। हल्का सा शोर चौथी गली के पार हो गया। लेकिन सुनने वाले भी कम नही थे। रात में जागने वाले भी कम नही थे। क्योंकि रात अभी तक़रीब आधी थी। एक ओर नींद का कड़ा पहरा हुआ। दूसरी और कुछ लोगो का सवेरा हुआ। कुछ किस्मत लिख कर इंतजार में थे। कुछ किस्मत लिखने के कतार में थे। किसी की आख़री मंजिल थी रात। तो किसी की पहली शुरुआत थी रात क्योंकि रात अभी तक़रीब आधी थी। विवेक सिंह राजावत। रात में अकेले चलना तुम्हारी याद दिलाता हैं।