दोहा :- गिरधर तुमने जो दिया , मुझे आज उपहार । उसे समझता ही नही , देखो अब संसार ।।१ करते क्यों मेरा नहीं , आकर तुम संहार । मिलता अब मुझको नही , दुनिया से मनुहार ।।२ गिरधर तेरी चाकरी , करते थे हम खूब । अब तो लगता है मुझे , आज गये तुम ऊब ।।३ सब रिश्तों से थी अलग , तेरी मेरी प्रीत । क्या जाने ये जग मुआ , जिसकी झूठी रीति ।।४ तेरे मेरे प्रेम की , वेणु सुनाती गीत । तुम भी तो थे जानते , तुम ही मन के मीत ।।५ तुमसे तो बोला नही , हमने देखो झूठ । कहते तुम कुछ क्यों नही , बैठे बनके ठूठ ।।६ हरो आज चिंता सभी , दूर करो मन मैल । शरण तुम्हारे मैं रहूँ , ज्यों कोल्हू का बैल ।।७ अब रिश्तों से कर मुझे , गिरधर तू आजाद । रख लो अपनी तुम शरण , करता हूँ फरियाद ।।८ जीते जी मेरा नहीं , इस जग में अब ठौर । लोभी स्वार्थी लोग का , अब चलता है दौर ।।९ बदले सबने रंग है , मन की कहकर बात । अपने हित की बात कह , कर ली काली रात ।।१० विनय करूँ मैं आपसे , करो इसे स्वीकार । अपनी शरण बुला मुझे ,कर दो अब उद्धार ।।११ भ्रामर दोहा:- चार लघु झूठा ये संसार है , झूठी सारे मीत । सच्चा तो भूखा रहे , गाता कान्हा गीत ।।१ स्वार्थी रिश्तें तो सदा , देते हैं दुत्कार । देखा है देखो अभी , माया रूपी प्यार ।।२ नैनों से बातें करें , मीठी प्यारी आज । बैठे वे देखा करें , पूछे क्या है राज ।।३ दाता कष्टों से नहीं , होती है क्यों पीर । धोखा खाके क्यों बहे , दो नैनों से नीर ।।४ २७/०४/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- गिरधर तुमने जो दिया , मुझे आज उपहार । उसे समझता ही नही , देखो अब संसार ।।१ करते क्यों मेरा नहीं , आकर तुम संहार । मिलता अब मुझको नही , दुनिया से मनुहार ।।२