हिज्र की दावत आने वाली है, एक शख्स है जिसने दिल से याद किया है । ये इश्क ही खुदगर्ज़ है तुम पहले शख्स नहीं हो, तुम इसके तौर-तरीके से वाकिफ़ थी इसलिए मैंने तुम्हे खुद से जुदा किया है। वक्त पर लारी चल ही पड़ती है इसमें नाराज़गी कैसी, जाने वाले चले जाते है मैंने हर किसी को हँसकर विदा किया है। अब लौट कर आओ तो अपने साथ एक कफ़न भी लेकर आना, मेरी क़ब्र उसी घर में बनी है जिसको तुमने क़ब्रिस्तान किया है। ये सोच कर मत सोचना की दुनिया क्या कहेगी, मैं ये पहला शख्स नही हूँ जिसका तुमने ये हाल किया है।। ©Ajay Dudhwal हिज्र की दावत आने वाली है, एक शख्स है जिसने दिल से याद किया है । ये इश्क ही खुदगर्ज़ है तुम पहले शख्स नहीं हो, तुम इसके तौर-तरीके से वाकिफ़ थी इसलिए मैंने तुम्हे खुद से जुदा किया है। वक्त पर लारी चल ही पड़ती है इसमें नाराज़गी कैसी,