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परिवर्तन ------------ दूर से अक़्सर दूसरों की दुन

परिवर्तन
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दूर से अक़्सर दूसरों की दुनिया आबाद नज़र आती है ख़ुद के आशियाँ में झांको तो सिर्फ तन्हाई नज़र आती है

सलाम करते सूरज में ढलती हुई शाम नज़र आती है बदलते वक़्त और हालात में बदलाव की शुरुआत नज़र आती है

हुनर को जितना भी क़ैद करो वो दायरे के बाहर नज़र आती है झूट को कितना भी सच साबित करो अंत में उसकी हार नज़र आती है

बाज़ार में बिकता ईमान भी नज़र आता है हर शक़्स किसी न किसी की नज़रों में आने को बेताब नज़र आता है

मनीष राज

©Manish Raaj
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