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ना कोई मंजिल का पता, ना ही कोई रहगुज़र, अम

ना  कोई  मंजिल  का  पता,  ना  ही  कोई  रहगुज़र,
अमानत  बस  इतनी  सी, संग  लोगों  का  प्यार था।
चल  दिए   हम  जिस   तरफ़,  कारवाँ  बनता   गया,
कुछ और नहीं फ़क़त लोगों का, मुझ पर ऐतवार था। 🌝प्रतियोगिता-73 🌝
 
✨✨आज की रचना के लिए हमारा शब्द है ⤵️

🌹"कारवाँ"🌹

🌟 विषय के शब्द रचना में होना अनिवार्य नहीं है I कृप्या 
केवल मर्यादित शब्दों का प्रयोग कर अपनी रचना को उत्कृष्ट बनाएं I
ना  कोई  मंजिल  का  पता,  ना  ही  कोई  रहगुज़र,
अमानत  बस  इतनी  सी, संग  लोगों  का  प्यार था।
चल  दिए   हम  जिस   तरफ़,  कारवाँ  बनता   गया,
कुछ और नहीं फ़क़त लोगों का, मुझ पर ऐतवार था। 🌝प्रतियोगिता-73 🌝
 
✨✨आज की रचना के लिए हमारा शब्द है ⤵️

🌹"कारवाँ"🌹

🌟 विषय के शब्द रचना में होना अनिवार्य नहीं है I कृप्या 
केवल मर्यादित शब्दों का प्रयोग कर अपनी रचना को उत्कृष्ट बनाएं I