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हृदय वेदना का शब्दों में जब जब भी उत्थान ह

हृदय  वेदना  का  शब्दों   में  जब  जब  भी उत्थान हुआ।
अंतर्मन  ने  देखा  जग  को  तब  कवि  का निर्माण हुआ।।
,
तन से निश्छल मन से निश्छल होकर  कवि  ने क्या पाया।
तन को विह्वल मन को विह्वल कर के कवि ने क्या पाया।।
,
वर्षो  का  तप  कठिन  परीक्षा, निरुद्देश्य  ही  पार  किया।
कण कण में जो भाव छिपे थे कवि ने उन्हें आधार किया।।
,
सतत कर्म  की  परिभाषा  को   परिभाषित  करते करते।
चिर  वियोग  या  मनो  योग  को परिभाषित करते करते।।
,
लिख डाले अध्याय कई पर  उनको  न  अभिमान हुआ।
अंतर्मन  ने  देखा  जग  को  तब कवि का निर्माण हुआ।।
,
विपदा   बाधा   देखी   उसनें  जीवन  से  संघर्ष  किया।
समय चक्र  ने   तब जाकर के भावों को  उत्कर्ष किया।।
,
अपने   क्रंदन  और  रुदन  को  शब्दों   में   सीते  सीते।
अश्रु    पूरित   नयनों  के  ही   विप्लव  में  जीते  जीते।।
,
स्वयं  हारकर  नई  कहानी  और अमरता लिख डाली।
असफलता को देखा उसने और सफलता लिख डाली।।
,
नित   नित   नए  आयामों पर भी चर्चा खूब निभाई थी।
अनुभव अनुभव अनुभव अनुभव गाढ़ी बड़ी कमाई थी।।
,
चला  गया  जग  से  वो जब ,तब शब्दों से यशगान हुआ।
अंतर्मन  ने  देखा  जग  को  तब  कवि  का निर्माण हुआ।।
हृदय  वेदना  का  शब्दों   में  जब  जब  भी उत्थान हुआ।
अंतर्मन  ने  देखा  जग  को  तब  कवि  का निर्माण हुआ।।
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तन से निश्छल मन से निश्छल होकर  कवि  ने क्या पाया।
तन को विह्वल मन को विह्वल कर के कवि ने क्या पाया।।
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वर्षो  का  तप  कठिन  परीक्षा, निरुद्देश्य  ही  पार  किया।
कण कण में जो भाव छिपे थे कवि ने उन्हें आधार किया।।
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सतत कर्म  की  परिभाषा  को   परिभाषित  करते करते।
चिर  वियोग  या  मनो  योग  को परिभाषित करते करते।।
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लिख डाले अध्याय कई पर  उनको  न  अभिमान हुआ।
अंतर्मन  ने  देखा  जग  को  तब कवि का निर्माण हुआ।।
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विपदा   बाधा   देखी   उसनें  जीवन  से  संघर्ष  किया।
समय चक्र  ने   तब जाकर के भावों को  उत्कर्ष किया।।
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अपने   क्रंदन  और  रुदन  को  शब्दों   में   सीते  सीते।
अश्रु    पूरित   नयनों  के  ही   विप्लव  में  जीते  जीते।।
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स्वयं  हारकर  नई  कहानी  और अमरता लिख डाली।
असफलता को देखा उसने और सफलता लिख डाली।।
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नित   नित   नए  आयामों पर भी चर्चा खूब निभाई थी।
अनुभव अनुभव अनुभव अनुभव गाढ़ी बड़ी कमाई थी।।
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चला  गया  जग  से  वो जब ,तब शब्दों से यशगान हुआ।
अंतर्मन  ने  देखा  जग  को  तब  कवि  का निर्माण हुआ।।
rameshsingh8886

Ramesh Singh

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