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rameshsingh8886
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Ramesh Singh

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Ramesh Singh

दिन तो अक्सर कट जाता है, रातें बोझिल होती है;
टूटे दिल को समझाने में ज्यादा मुश्किल होती है।

©Ramesh Singh
  #hindishayri
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Ramesh Singh

दर-ओ-दीवार पे सर को पटक कर रोज़ कहता हूँ।
मैं  तन्हा  हूँ  मैं  तन्हा  हूँ  मैं  तन्हा  हूँ मैं तन्हा हूँ।।

©Ramesh Singh
  #tanha
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Ramesh Singh

चार दिन की ज़िंदगी थी,और क्या हम मर गये।
देखने  वाले  तमाशा   देखकर   के   घर  गये।।
,
मौत का चेहरा यकीनन देखकर अच्छा लगा।
क्या बताये दोस्त हम तो ज़िंदगी से डर गये।।
,
एक  क़ैदी  फ़ाख्ता  ये  सोचता  था उड़ चलूं।
इक जरा सी भूल में उस फाख़्ते  के  पर गये।।
,
लाश मेरी थक चुकी है बोल के सबको यही।
दोपहर तक ठीक थे हम,शाम को गुज़र गये।।
,
आज अरसे बाद सिगरेट हाथ में थी और तुम।
याद  आये  इस  कद्र   कि हाथ ये ठहर गये।।
,
दफ़्न मेरे साथ मेरी ये भी ख़्वाहिश हो गई।
मेज़ पर खाना लगा वो बोलता किधर गये।।
,
रेलगाड़ी  है  ये  दुनियां  और  ये मेरा टिकट।
जा तो सकते थे कहीं पर बीच में उतर गये।

©Ramesh Singh
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Ramesh Singh

ऐसा  नहीं  हुआ   कभी   वैसा   नहीं  हुआ।
क्या क्या बताया जाए कि कैसा नहीं हुआ।।
,
होता  है  सबके  साथ  तो  अच्छा हुआ करे।
लेकिन  हमारे  साथ  क्यो  अच्छा नहीं हुआ।।

©Ramesh Singh
  #tanha
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Ramesh Singh

तन्हाई  में  रहने  वाले  तन्हाई  से डरते है।
यानी धोका खाने वाले परछाई से डरते है।।
#रमेश

©Ramesh Singh
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Ramesh Singh

मिसरा -ए-उला  को  सानी  करना है।
पत्थर को पिघलाकर पानी करना है।।
,
मेरी उस  तक  सारी   बातें   पहुँचेंगी।
मुझको लहज़ा और रूहानी करना है।।
,
सबकी   बातें   मानी  है  मैंने  अक्सर।
अब मुझको भी आना-कानी करना है।
,
मैं  खो  जाता  हूँ ये अक़्सर ठीक नहीं।
अब से ख़ुद की ही निगरानी करना है।।
,
आख़िर थोड़े दिन की दुनियां-दारी में।
कितने दिन तक और नादानी करना है।
,
उसकी  सारी   शर्तें    मान   के लौटा हूँ।
अब मुझको अपनी मन-मानी करना है।।
#रमेश

©Ramesh Singh
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Ramesh Singh

नहीं  तुमसे  कोई  शिकवा तुम्हें हम भूल जाएँगे।
अभी  ताज़ा  है  ये  सदमा तुम्हें हम भूल जाएँगे।।
,
ज़माना  जानना  चाहेगा तुमको तुम कहाँ हो तब।
सुना  देंगें   कोई   क़िस्सा  तुम्हें हम भूल जाएँगे।।
,
मुबारक़  वस्ल  हो  तुमको  रहो आबाद तुम ऐसे,
हमें अब कुछ नहीं कहना तुम्हें हम भूल जाएँगे।।
,
ग़मो की आंधियों से दर-ब-दर होके खुशी का हम,
तलाशेंगे   नया  नुस्ख़ा   तुम्हें   हम  भूल जाएँगे।।
,
हमारा  दर्द  कागज़ पे उतरकर मर गया लेकिन,
बनाकर के नया   नग़्मा  तुम्हें  हम  भूल  जाएँगे।।
,
तुम्हारा ख़ैर-ओ-मक़दम हो हमें दिक़्क़त नहीं कोई।
अकेले  सीखकर  रहना  तुम्हें  हम  भूल  जाएँगे।

©Ramesh Singh
  #hindishayri
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Ramesh Singh

रोएगा कोई क्यो जहां में मेरे हाल पर?
हँसने लगे है लोग सारे  इस सवाल पर।।
#रमेश

©Ramesh Singh
  #nightshayri
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Ramesh Singh


निग़ाहों   से  लहू  टपका  रहा  हूँ   और   ये  क़िस्मत।
मुझे हर  बार  नाहक़   में   सताकर   तंग   करती  है।।
मैं  अपनी  बेबसी  पर   रो   रहा   हूँ  और  ये  दुनियां।
मेरी   इस   बेबसी   पर  हर  तरह के तंज  करती है।।

परिंदों   की   तरह  घर  से  निकलता  हूँ  फ़ज़ाओं  में।
तो मुझको तीर आ कर के किसी तरकश का लगता है।।
मैं   अपने   आप   को जब  देखता  हूँ तो क्या पाता हूँ।
कोई   इंसान   जैसे   टूटकर   बेबस    सा   लगता  है।।
,
पुरानी    दास्तानों    का     हवाला   दे   रहा   हूँ  पर।
मेरे  जख्मों  को  कोई  अब  कहाँ  शादाब  करता है।।
शब-ए-हिज्रां के नग्मों का असर  दिखने लगा है अब।
कोई  लहज़ा  यूँ  ही  अपना  नहीं   तेज़ाब   करता  है।।
,
मुनासिब   है  कि  मेरे   बाद  का  मंज़र   सुहाना हो।
मगर  मैं  इस  तरह  के  कोई  वादे कर नहीं सकता।।
मुझे   मालूम   है   हर   रास्ता    लेकिन   मैं  क़ैदी  हूँ।
रिहा  होकर  मैं  दुनियां से यक़ीनन लड़ नहीं सकता।।

©Ramesh Singh
  #nightshayari
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Ramesh Singh

ज़मीं को चाह लूँगा तो फ़लक से जोड़ सकता हूँ।
उठाकर हाथ  में  पत्थर  सितारें  तोड़  सकता हूँ।।

©Ramesh Singh
  #hindishayari
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