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White राह चलते ही मन्ज़िल मिल जाये,ये सही है क्या।

White राह चलते ही मन्ज़िल मिल जाये,ये सही है क्या।
ग़र यूहीं मिल जाती है मन्ज़िल, तो फ़िर क्या ही है ये फ़ैसला।।
सफ़र तय करते करते हमसफ़र की तलाश भी पूरी हुई।
तो क्या उस सफर पर आगे ना बढ़ बस ठहर जाना भी सही है क्या।।
यू रुकना, चलना फ़िर रुक रुक कर चलना,ग़लत नही हैं।
तो मेरा यूँ बिना किसी चाह आगे बढ़ना भी सही है क्या।।
क्या कुछ कर सकने की चाह ,कुछ भी न करने दे रही है।
ये जो दो फ़ैसले हैं, ये दोनों ही सही हैं क्या।।

©HAQIM◆E◆ISHQ【sfr◆ak◆aaghhaaj】Gj
  #sad_shayari #संघर्ष_ही_जीवन_है