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न जाने क्यों हैँ वे अवाक और स्तब्ध और कोस

न जाने  क्यों हैँ  वे  अवाक    और स्तब्ध 
और  कोस  रही है  अपनी किस्मत को. क़ि 
आखिर क्यों     उन्हें  बंधक  बना कर 
   रखा गया है पुस्तकालय   क़े  उस . उपेक्षित   अँधेरे  कोने  मे. रखी   लोह  कवच की  अलमारी  मे 
उन्हें  आज  भी  प्रतीक्षा है  किन्ही   शीतल   सुखद 
स्पर्शों की l
उन्हें  काफ़ी  तकलीफ   होती है .   ये  देख कर  क़ि  उनकी  
तरफ   कोई  झाँकता  भी  नहीं  है 
आज भी  वे  प्रतीक्षारत    हैँ  ताज़ा  हवाओं क़े    झोंको क़ेलिए  और  आशान्वित  है क़ि 
भविष्य   मे  कोई तो      आएगा   जो 
उन्हें  छूएगा    उनके  पृष्ठों  को    सहलायेगा #अवाक  और  स्तब्ध..
न जाने  क्यों हैँ  वे  अवाक    और स्तब्ध 
और  कोस  रही है  अपनी किस्मत को. क़ि 
आखिर क्यों     उन्हें  बंधक  बना कर 
   रखा गया है पुस्तकालय   क़े  उस . उपेक्षित   अँधेरे  कोने  मे. रखी   लोह  कवच की  अलमारी  मे 
उन्हें  आज  भी  प्रतीक्षा है  किन्ही   शीतल   सुखद 
स्पर्शों की l
उन्हें  काफ़ी  तकलीफ   होती है .   ये  देख कर  क़ि  उनकी  
तरफ   कोई  झाँकता  भी  नहीं  है 
आज भी  वे  प्रतीक्षारत    हैँ  ताज़ा  हवाओं क़े    झोंको क़ेलिए  और  आशान्वित  है क़ि 
भविष्य   मे  कोई तो      आएगा   जो 
उन्हें  छूएगा    उनके  पृष्ठों  को    सहलायेगा #अवाक  और  स्तब्ध..

#अवाक और स्तब्ध..