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बागों में फूल खिले हैं पर तुम ना मिले तिरगी में दी

बागों में फूल खिले हैं पर तुम ना मिले
तिरगी में दीप जले हैं पर तुम ना मिले
एक तेरा गम ही अपनी दौलत है
अब ना जीने की कोई चाहत मिले
एक तेरी चाहत में अपने घर से हम
बहुत दूर तक चले आए पर तुम ना मिले
मैं तेरी राह ताकि हूं दिन रात रांझा
पर तुमको कहां अब फुर्सत मिले
तेरी खुशी तेरी परवाह की खातिर 
हम तेरे मुताबिक ढले पर तुम ना मिले
तू बना ले दिल को पत्थर अपना
टूट जाने की मुझको आदत मिले
तेरी हर यादों की इक ज़िंदान में हम
थे सदियों- साल पहले पले तुम ना मिले
सुन मेरी किस्मत ही है यार बुरी
मुझे ना तुमसे कोई शिकायत है
तू चाहे कर दे दिल से दूर मुझे
मुझे फिर भी तुमसे मोहब्बत है
अब इस तन्हाई में तेरे बाद रांझा
दिल के बड़े मसअले पर तुम ना मिले
इन महफिलों को और इन में मखानों में
 थे कितने लोग भले पर तुम ना मिले
एक तेरी ही आखरी चाहत थी पर तुम ना मिले
 दूसरों से कैसे ही अब मोहब्बत के फूल  खिले

©Shubhanshi Shukla
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