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जब झरोंखों से ही आपस में बतियातें थे, गली में नजर

जब झरोंखों से ही आपस में बतियातें थे,
गली में नजर ताकतें थे.......
तब खिड़कियां भी बोलती थी...
अब तो बस खिड़कियां....
परदे लगाने और एसी लगाने का साधन बन गई....
वो दिन भी क्या दिन थे!

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