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विवाहित स्त्री से प्रेम जब प्रेम हो जाता है इक वि

विवाहित स्त्री से प्रेम 
जब प्रेम हो जाता है इक विवाहित स्त्री से
याद रखना पड़ता है ,उसके पति के घर आने का वक़्त
गिननी होती है उसके कुकर की सीटियाँ
देखना होता है दाल बातों के दरम्यान गली या नहीं
ध्यान रखना होता है उसने चूल्हा बंद किया या नहीं
उसके परिवार का ख़याल करना होता है
पूछना पड़ता है हर रोज़ कैसा है उसका बेटा ? 
लिखनी होती हैं कई मैसेज रातें जगकर
बताना पड़ता है प्रेम लिख-लिखकर,उसकी बुझी हुई आँखों में झाँकते हुए
कई शाम रात गुज़ारनी पड़ती है,उससे प्रेम निश्छल है आपका। 
उसकी पसंद-नापसंद देर तक सुनना होता है
उसके लिए उसका गुलाब बनना पड़ता है
उसके झुमकों पर ज़ुल्फ़ सा ढ़लना होता है
उसके पति पर उसकी झुंझलाहट का
ना चाहते हुए भी सब दर्द सुनना पड़ता है
देखने पड़ते हैं उसके ज़ख़्म, उसके घाव
रो-रोकर उनपर मरहम होना पड़ता है
उसे तब चूमकर अपनी बाहों में भरना होता है
उसकी आँखों में झाँककर बताना पड़ता है,कि उसके पास हमेशा है आप। 
उसके दुःख पर उसको चुप समझाना होता है,बताना होता है- आप हमेशा उसके साथ है
उसकी सास की बेतुकी रंज़ भरी बातों से
ननद-भौजाई की जालसाज़ी साज़िशों से 
उसका ध्यान बिलकुल हटाना होता है 
उसको समझाना होता है अपना प्रेम उससे
उसकी नाराज़गी में उसे हँसाना होता है
उसके मौन पर उससे सवाल करने पड़ते हैं
उसे बड़े प्यार से बुलाना होता है अपने क़रीब
यक़ीन दिलाना होता है उसको कि-,प्रेम हो जाता है इक बेहद प्यारी विवाहित स्त्री से...
आप इस पर अवश्य सोचें। जरूरी नहीं कि मेरी सभी बातें ठीक हों। कौन दावा कर सकता है सभी बातों के ठीक होने का। ऐसा मैं सोचता हूं, वह मैंने कहा!!!

©Andy Mann
  #प्रेम_पर_चिंतन