अज़ाब समझौते बन जाते हैं जिनपे इख़्तियार नहीं होता,
वो भी तो घर लौटते हैं जिनका किसीको इंतज़ार नहीं होता!
ख़तरे से ख़ाली नहीं हर आधे अधूरे मरासिम का यक़ीन,
अक्सर महज़ ज़रूरतें ही होतीं हैं, कोई प्यार नहीं होता!
फिर एक जज़्बात का वलवला शेर बनते बनते रह गया,
उन नाक़ाम मोहब्बतों के मानिंद जिनमें इज़हार नहीं होता! #Shayari