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मना रही देखो प्रकृति ,आज धरा पर फाग । संग पवन भी

मना रही देखो प्रकृति  ,आज धरा पर फाग ।
संग पवन भी झूम के , गाती है अब राग ।।

जाती है वह सैर को , लेकर छाता साथ ।
छूट न जाए वह कहीं , ढीले मत कर हाथ ।।

२४/०२/२०२३     -     महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मना रही देखो प्रकृति  ,आज धरा पर फाग ।
संग पवन भी झूम के , गाती है अब राग ।।

जाती है वह सैर को , लेकर छाता साथ ।
छूट न जाए वह कहीं , ढीले मत कर हाथ ।।

२४/०२/२०२३     -     महेन्द्र सिंह प्रखर
मना रही देखो प्रकृति  ,आज धरा पर फाग ।
संग पवन भी झूम के , गाती है अब राग ।।

जाती है वह सैर को , लेकर छाता साथ ।
छूट न जाए वह कहीं , ढीले मत कर हाथ ।।

२४/०२/२०२३     -     महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मना रही देखो प्रकृति  ,आज धरा पर फाग ।
संग पवन भी झूम के , गाती है अब राग ।।

जाती है वह सैर को , लेकर छाता साथ ।
छूट न जाए वह कहीं , ढीले मत कर हाथ ।।

२४/०२/२०२३     -     महेन्द्र सिंह प्रखर