रात रात में बात हो गई खबर कहीं कानों कान ना हुई कहानी मुख्तसर थी वो रोई चिल्लाई किसी ने उसकी एक न सुनी रोई थी चिल्लाई थी फिर ज़ार ज़ार सब खोई थी फिर हार गई वो दुनिया से जो ख़ुद ही ख़ुद में भरमाई थी कहानी मुख्तसर थी दुनिया से लड़ने वाली जब अपनों से ही न लड़ पाई थी महज 14 की उम्र थी उसकी पढ़ने की ललक थी जीवनभर की मां बाप ने न समझा ये जाने क्यों इतनी छोटी बच्ची ब्याही थी "सुन पति है वो तेरा। उसकी सुनना और उसके तीन बच्चों की मां भी है तू ही इसका ख्याल रखना।" जब मां ने नोटों की बंडली हाथ में पकड़े ये ज्ञान की माला पिरोई थी तब जाकर समझ आया कहानी मुख्तसर ही तो थी वो बेटी थी जो आज घर की लक्ष्मी बन पाई थी। रात रात में बात हो गई खबर कहीं कानों कान ना हुई कहानी मुख्तसर थी वो रोई चिल्लाई किसी ने उसकी एक न सुनी रोई थी चिल्लाई थी फिर ज़ार ज़ार सब खोई थी फिर हार गई वो दुनिया से