घोटाला पिछले कुच्छ दिनों से मेरा मन, बहुत मचल रहा है लालच का महादानव मुझे उद्वेलित कर, आत्मा को कुचल रहा है बेईमानी से कमाने की इच्छा, बलवती हो रही है शिष्टाचार और सद्भावना, अन्दर ही अन्दर सती हो रही है दिल करता है, भ्रष्ट आचार से, कोई घोटाला कर लूँ अनीति और हराम की कमाई से, अपना घर भर लूँ जनता की खून पसीने की कमाई, पल भर में डकार जाऊं खुद पर लगे आरोपों को, पूरी बेशर्मी से नकार जाऊं खाकर रकम गरीबों की, बेशर्म और नम्फ्ट हो जाऊं सब इल्जामों पे मिट्टी डाल, कुम्भकर्णी नींद सो जाऊं ये "थर्ड रेट" आन्दोलनकर्ता मेरा क्या कर लेंगे अपने खिलाफ मुंह खोलने वाले, एक एक को धर लेंगे हार, बेइज्जती और सजा के बावजूद भी, नहीं आऊंगा बाज़ करके झूठे वादे धोखे, पांच साल बाद, फिर पहनूंगा ताज़ घपले और घोटालों के फ़ेरहिस्त में, अपना नाम लिखवाऊंगा करके कायम अराजकता, फिर धृतराष्ट्र हो जाऊँगा रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइ ©Anand Kumar Ashodhiya #घोटाला #MereKhayaal