Nojoto: Largest Storytelling Platform

प्रेम का रोग जबसे मुझे है लगा । लोग कहने लगे ये गय

प्रेम का रोग जबसे मुझे है लगा ।
लोग कहने लगे ये गया ये गया ।।

हर तरफ़ यार सूरत नज़र आ रही ।
चाँदनी भी हमें देख मुस्का रही ।।
दिल न काबू हमारे हुआ फिर कभी ।
रेत सा फिर फिसलता गया ही गया ।।
प्रेम का रोग जबसे मुझे है लगा ......

आज दीवार से बात करने लगा ।
मैं शज़र से गले रोज मिलने लगा ।।
दिन ढले शाम पीपल तले हम मिलें ।
सोचकर दिल दिवाना हुआ ये हुआ ।।
प्रेम का रोग जबसे मुझे है लगा ....

चाँद मेरा कभी रात आता नही ।
सूर्य से दिन शुरू हमारा नही ।।
भोर उसकी गली में उसे देख हो ।
प्रेम में बावला हो गया हो गया ।।
प्रेम का रोग जबसे मुझे है लगा ...

स्वप्न पाकर सुहाने न उड़ने लगूँ ।
बिन पिए आज मैं जो बहकने लगूँ ।।
थाम जो आकर न गिरने लगूँ 
इस तरह बात दिल की बताता गया ।
प्रेम का रोग जबसे मुझे है लगा....

प्रेम का रोग जबसे लगा है मुझे ।
लोग कहने लगे ये गया ये गया ।।

०३/०४/२०२३    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR प्रेम का रोग जबसे मुझे है लगा ।
लोग कहने लगे ये गया ये गया ।।

हर तरफ़ यार सूरत नज़र आ रही ।
चाँदनी भी हमें देख मुस्का रही ।।
दिल न काबू हमारे हुआ फिर कभी ।
रेत सा फिर फिसलता गया ही गया ।।
प्रेम का रोग जबसे मुझे है लगा ......
प्रेम का रोग जबसे मुझे है लगा ।
लोग कहने लगे ये गया ये गया ।।

हर तरफ़ यार सूरत नज़र आ रही ।
चाँदनी भी हमें देख मुस्का रही ।।
दिल न काबू हमारे हुआ फिर कभी ।
रेत सा फिर फिसलता गया ही गया ।।
प्रेम का रोग जबसे मुझे है लगा ......

आज दीवार से बात करने लगा ।
मैं शज़र से गले रोज मिलने लगा ।।
दिन ढले शाम पीपल तले हम मिलें ।
सोचकर दिल दिवाना हुआ ये हुआ ।।
प्रेम का रोग जबसे मुझे है लगा ....

चाँद मेरा कभी रात आता नही ।
सूर्य से दिन शुरू हमारा नही ।।
भोर उसकी गली में उसे देख हो ।
प्रेम में बावला हो गया हो गया ।।
प्रेम का रोग जबसे मुझे है लगा ...

स्वप्न पाकर सुहाने न उड़ने लगूँ ।
बिन पिए आज मैं जो बहकने लगूँ ।।
थाम जो आकर न गिरने लगूँ 
इस तरह बात दिल की बताता गया ।
प्रेम का रोग जबसे मुझे है लगा....

प्रेम का रोग जबसे लगा है मुझे ।
लोग कहने लगे ये गया ये गया ।।

०३/०४/२०२३    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR प्रेम का रोग जबसे मुझे है लगा ।
लोग कहने लगे ये गया ये गया ।।

हर तरफ़ यार सूरत नज़र आ रही ।
चाँदनी भी हमें देख मुस्का रही ।।
दिल न काबू हमारे हुआ फिर कभी ।
रेत सा फिर फिसलता गया ही गया ।।
प्रेम का रोग जबसे मुझे है लगा ......

प्रेम का रोग जबसे मुझे है लगा । लोग कहने लगे ये गया ये गया ।। हर तरफ़ यार सूरत नज़र आ रही । चाँदनी भी हमें देख मुस्का रही ।। दिल न काबू हमारे हुआ फिर कभी । रेत सा फिर फिसलता गया ही गया ।। प्रेम का रोग जबसे मुझे है लगा ...... #कविता