कुछ इस तरह बेरुखी उसकी खाती रही,
मन अंदर ही अंदर जलता रहा,
जान उसकी.. कहे जमाना जाती रही।
जहन में दम तोड़ती गुनाहों के उसकी बेड़ियां,
खनक सिक्कों की उछालता रहा,
बात-बात पर बात सारी काटी जाती रही।
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