" मुन्तजिर हु इस एहसास में आज भी उम्मीद कायम हैं , कोई ग़म नहीं की मेरे ख्वाहिशों शहर तेरा आज भी आना जाना है , रोक लु खुद को ख्याल जाहिर ठहरा है इस मुन्तजिर में , कोई ख्याल तुझे भी मेरा परेशान कर रहा होगा , हम मिले ना वेशक कहीं किसी गली चैराहे के उन रास्तों पे , ये जज़्बात दिल अब भी कुछ कायम रखा जायेगा , सन होगी सांसें मेरी इस रुसवाई में तेरा जज़्बात कैसे रफा दफा करे, तुझे सोच के ही मुहब्बत की खलिश मुहब्बत होती हैं . " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram " मुन्तजिर हु इस एहसास में आज भी उम्मीद कायम हैं , कोई ग़म नहीं की मेरे ख्वाहिशों शहर तेरा आज भी आना जाना है , रोक लु खुद को ख्याल जाहिर ठहरा है इस मुन्तजिर में , कोई ख्याल तुझे भी मेरा परेशान कर रहा होगा , हम मिले ना वेशक कहीं किसी गली चैराहे के उन रास्तों पे , ये जज़्बात दिल अब भी कुछ कायम रखा जायेगा , सन होगी सांसें मेरी इस रुसवाई में तेरा जज़्बात कैसे रफा दफा करे, तुझे सोच के ही मुहब्बत की खलिश मुहब्बत होती हैं . "