ऐ दोस्त तुम लगते हो शहीद कपूर इसमें कोई शक नहीं, इस महफ़िल के तुम हो कोहिनूर बैठे कभी फुर्सत में करें गुफ़्तगू जो अपनी दोस्ती का कभी लिखू हिसाब जी में है मेरे एक दो शेर क़्या तुम पे लिख दूँ यारा पूरी किताब मुझे ये कहने में भी कोई हर्ज़ नहीं तेरे किरदार के सामने फीका लगता है मेरे हमनफज़, वो अदाओ में देखता फलक से महताब ©qais majaaz 03 gumnaam SIDDHARTH SHENDE