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गीतिका  मापनी - 221   2122   221  212 देखो बसंत

गीतिका 

मापनी - 221   2122   221  212

देखो बसंत आया अवतार हो गया। 
वसुधा सजी अनूठा संसार हो गया। 

तीसी विहंसती बरबस मुग्ध हो रही , 
सकुचा उठी मनोहर श्रृंगार हो गया। 

सौरभ उड़ा रही कलियाँ भी गली-गली, 
बगिया खिली जगत भी गुलजार हो गया। 

महुआ कहीं बिखेरे भीनी सुगंध है, 
टेसू खिला कि मन भी कचनार हो गया। 

पुरवा सखी सुनाती संगीत प्रीत के, 
मन बावरा सलोना सुकुमार हो गया। 

कब से बुलाती विरहन परदेश जो गया, 
कहती किसे बताओ क्या खार हो गया। 

मधुमास मन न भाए बिन प्रीत रीत के, 
मनमीत संग हर पल त्यौहार हो गया।

©Dr Usha Kiran
  #मधुमास